यदि एग्जिट पोल को सही माना जाए, तो प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में NDA गठबंधन पुनः भारत में सरकार बनाने जा रही। यदि ऐसा हुआ तो यह कई मायनों में मील का पत्थर साबित होगा। लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले नरेंद्र मोदी पहले गैर कांग्रेसी नेता होंगे। सात चरणों में चले इस चुनाव में शुरू से ही यह तय माना जा रहा था की मोदी पुनः दिल्ली की गद्दी में विराजमान होने जा रहे हैं। परन्तु उनके लिए यह मार्ग बहुत आसान नहीं था। एक तरफ देश में सभी विपक्षी दल एक साथ आ कर इंडी गठबंधन बना चुके थे वहीं दूसरी ओर दस साल की एंटी इनकमबेंसी भी थी, जिसके विरुद्ध मोदी सरकार को लड़ना था।
ऐसे में पीएम मोदी ने आगे से मोर्चा संभालते हुए पूरा चुनाव अपने दस साल के कार्यकाल में हुए अभूतपूर्व कार्यों के नाम पर लड़ने का प्रयास किया। जनता में भाजपा प्रत्याशियों के प्रति भले ही बहुत उत्साह न हो, लेकिन उसको मोदी जी के ऊपर पूरा विश्वास था। भारत का नागरिक जब विदेशों में भारत की मजबूत होती छवि को देखता है, और साथ-साथ अपने गांव में पहली बार बनी पक्की सड़क को देखता है, तो उसे मोदी के अलावा और किसी पर भरोसा करने का मन नहीं करता है। इसी प्रकार ग्रामीण महिला जब अपने जीवन में पहली बार पीएम आवास योजना का लाभ प्राप्त करते हुए अपना पक्का मकान देखती है और आयुष्मान भारत के अंतर्गत अपने परिवार का मुफ्त इलाज होते देखती है, तो उसे पता होता है कि किसे वोट देना है।
जो पत्रकार मोदी की विजय को हिंदू मुस्लिम की बाइनरी से देखते हैं, दरअसल या तो उन्होंने कभी जनता के बीच जाने की जहमत ही नहीं उठाई है या फिर वो कुंठायुक्त होने के कारण जमीनी हकीकत को देखना ही नहीं चाहते है। परन्तु अब लोकतंत्र में ‘लोक’ यानी जनता किसी भी ‘तंत्र’ यानी सिस्टम के ऊपर उठ कर राष्ट्र निर्माण की चिंता कर रही है, और उसे यह समझ है को कौन इस देश को बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, गांधी, सावरकर और अंबेडकर का “प्रबुद्ध भारत” बना सकता है। जनता द्वारा दिया गया संदेश अगर आप नहीं सुनना चाहते हैं, तो आप जनादेश को कभी समझ नहीं पाएंगे।
(लेखक इंडिया फाउंडेशन में रिसर्च फेलो हैं)
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